google.com, pub-1809443929674798, DIRECT, f08c47fec0942fa0 Operation Sindoor Pe S Jaishankar Ka Naya Bayan

Operation Sindoor Pe S Jaishankar Ka Naya Bayan

🌐 एस. जयशंकर ने स्पष्ट किया: "ट्रंप का भारत–पाक युद्धविराम पर दावा सत्य नहीं"

S -Jaishankar


नई दिल्ली / न्यूयॉर्क: विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने हाल में हुए एक विवादित मुद्दे पर साफ़-साफ़ तस्वीर पेश की है। एक बयान में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दावा किया था कि उन्होंने ही भारत और पाकिस्तान के बीच बातचीत और व्यापार को एक साथ जोड़कर फायरबंदी करवाई थी। लेकिन जयशंकर ने इस दावे का खंडन करते हुए कहा कि वह खुद उस समय प्रधानमंत्री मोदी के साथ मौजूद थे और युद्धविराम पूरी तरह से सामान्य कूटनीतिक प्रक्रिया के माध्यम से हुआ था — किसी विदेशी हस्तक्षेप के बिना।

🗓️ घटना का सच

  • 9 मई की रात भारत ने पाक अधिकृत कश्मीर में आतंकवादी ठिकानों पर सशस्त्र कार्रवाई की, जिसे बाद में "ऑपरेशन सिंदूर" नाम मिला।

  • उसी रात अमेरिकी उपराष्ट्रपति ने प्रधानमंत्री मोदी को आतंकवादी हमले की संभावित योजना की जानकारी दी, और इसके बाद मोदी ने जवाब देने का तर्कसंगत निर्णय लिया।

  • अगले ही दिन पाकिस्तान ने रक्षा चैनलों के बीच सीधे संवाद के माध्यम से फायरबंदी की पेशकश की, जिसे भारत ने स्वीकार किया।

🔍 ट्रंप का आरोप और जयशंकर की सफ़ाई

  • ट्रंप ने यह बताया कि उन्होंने "ट्रेड डील ना होगी तो युद्ध रुकेगा" की नीति अपनाकर मध्यस्थता की थी।

  • लेकिन जयशंकर ने पूनः स्पष्ट किया कि ऐसे किसी वादे या बातचीत की कोई जानकारी मौजूद नहीं है। भारत–पाक युद्धविराम युद्ध संबंधी सामान्य प्रक्रिया थी और इसे किसी व्यापारी सौदे से नहीं जोड़ा गया था।

  • उन्होंने यह भी बताया कि भारतीय प्रतिनिधियों ने पूरी प्रक्रिया में खुद ही नियंत्रण रखा और किसी भी तरह की बातचीत को अन्य एजेंडों से जोड़ने से साफ़ दूरी बनाई।

🛡️ आतंकवाद पर सख्त नीति

  • जयशंकर ने बताया कि हाल के हमलों का मकसद कश्मीर की अर्थव्यवस्था को नुक़सान पहुँचाना था, खासकर पर्यटन क्षेत्र को। उन्होंने इसे आर्थिक आतंकवाद का हिस्सा बताया।

  • उन्होंने स्पष्ट किया कि भारत ने नाभिकीय ताक़त होने के बावजूद रणनीतिक प्रतिक्रिया का विकल्प चुना और यह उसी रणनीति का हिस्सा था जिसने पाकिस्तान को स्थिति शांत करने पर मजबूर किया।

✅ निष्कर्ष

विदेश मंत्री जयशंकर ने दृढ़ता से कहा कि यह युद्धविराम भारत की कूटनीतिक क्षमता का प्रमाण था और इसकी प्रक्रिया में किसी भी तरह का व्यापार या दूसरे एजेंडे को जोड़ा जाना पूरी तरह निराधार है।

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