google.com, pub-1809443929674798, DIRECT, f08c47fec0942fa0 Matdata Soochi Me Badlaw Pe INDIA Gathbandhan Ka Aarop

Matdata Soochi Me Badlaw Pe INDIA Gathbandhan Ka Aarop

🗳️ क्या NRC की परछाईं लौट आई है? मतदाता सूची में बदलाव पर INDIA गठबंधन का बड़ा आरोप

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देशभर में चुनाव आयोग द्वारा शुरू किए गए "स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन" अभियान ने एक नई बहस को जन्म दे दिया है। इसके तहत जो मतदाता 2004 के बाद सूची में जुड़े हैं, उनसे माता-पिता का जन्म प्रमाणपत्र मांगा जा रहा है। इस फैसले के बाद विपक्षी पार्टियों ने इस प्रक्रिया को NRC का छुपा हुआ रूप बताते हुए चुनाव आयोग पर तीखा हमला बोला है।

🧨 विपक्ष का आरोप: लोकतंत्र पर हमला

  • विपक्षी INDIA गठबंधन का कहना है कि यह प्रक्रिया गरीब, आदिवासी, दलित, अल्पसंख्यक और प्रवासी मजदूरों को मतदाता सूची से हटाने की साजिश है।

  • कांग्रेस, राजद, वामपंथी दलों और टीएमसी ने इसे चुनावी अधिकारों की चोरी बताया है।

  • नेताओं का कहना है कि यह कानूनन और नैतिक रूप से गंभीर रूप से गलत कदम है, जिससे करोड़ों भारतीयों की नागरिकता और वोटिंग अधिकार खतरे में पड़ सकते हैं।

🧭 बंगाल की सियासी प्रतिक्रिया

  • मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इस प्रक्रिया की तुलना NRC से भी खतरनाक कदम से की।

  • सांसद डेरिक ओ’ब्रायन ने इसे "नाज़ी एंसेस्टर पास" से जोड़ा और कहा कि यह नागरिक अधिकारों पर सीधा हमला है।

  • टीएमसी प्रवक्ता ने आरोप लगाया कि ये सब एक राजनीतिक चाल है, जिससे 2026 विधानसभा चुनाव से पहले मतदाता घबराएं और भ्रमित हों।

📋 क्या कहता है चुनाव आयोग?

  • आयोग ने सफाई दी है कि यह कदम सिर्फ मतदाता सूची को अपडेट करने और फर्जी वोटरों को हटाने के लिए उठाया गया है।

  • आयोग का कहना है कि जिनके नाम पहले से सूची में हैं, उन्हें कोई चिंता नहीं करनी चाहिए — दस्तावेज़ सिर्फ नये नाम जोड़ने वालों के लिए मांगे जा रहे हैं।

🕰️ प्रक्रिया पर समय और सवाल

  • बिहार में शुरू हुई यह प्रक्रिया 25 दिनों में लगभग 8 करोड़ मतदाताओं को कवर करेगी — जिसे लेकर विपक्ष ने इसे जल्दबाज़ और बिना योजना वाला कदम बताया।

  • विशेषज्ञों का मानना है कि ग्रामीण और कमज़ोर वर्गों के लिए जरूरी कागज़ात जुटाना बेहद कठिन होगा।

✅ निष्कर्ष:

चुनाव आयोग का नया अभियान देश में चुनावी पारदर्शिता और सुरक्षा लाने की मंशा से शुरू हुआ हो सकता है, लेकिन विपक्ष का आरोप है कि इससे लोकतांत्रिक अधिकारों पर खतरा मंडरा रहा है।
यह बहस अब सिर्फ एक प्रक्रिया नहीं, बल्कि भारत के नागरिकों की पहचान और मतदान के अधिकार से जुड़ा बड़ा सवाल बन चुकी है।

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👉 क्या आपको लगता है कि इस तरह की प्रक्रिया जरूरी है या ये वंचित वर्गों के लिए एक और दीवार बन रही है? अपनी राय हमें नीचे कमेंट में बताएं।



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